Mann
- 90 Posts
- 39 Comments
मुरलीधर तुम अध्मुस्कानी
मुर्तिमान मुस्काते हो
ख़ुद थामे हो
डोर हमारा
हमसे सारा क्रम कराते हो
फिर पूछूं मैं
जग के पालक
क्यूँ दोषी हमे बनाते हो
ख़ुद ही तो कहा है तुमने
विधि का विधान रचा है सब
हम तो बस साधन मात्र
सारे जग के खेल तुम्ही से है
फिर पूछूं मैं क्यूँ
जग के पालक
क्यूँ दोषी हमे बनाते हो……….2
***मन लव स्वाति***
Read Comments